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कविता

माफीनामा

शैलेंद्र कुमार शुक्ल


एकलव्य-पथ* पर चढ़ते हुए
मैंने कई बार सोचा
गिन लूँ सीढ़ियाँ
अचानक माँ याद आई
वह कहती थी
पौधों की लंबाई नापने से उनकी बाढ़ रुक जाती है
दोस्त !
मैंने कभी नहीं गिनीं
एकलव्य-पथ की सीढ़ियाँ !!
कभी नहीं !!!

मै माफी माँगता हूँ
उस स्त्री से
जो मेरी दादी, माँ, बहन और मेरी बेटी है

तुम हँसोगे मुझ पर, 'भिखमंगा' जानते हुए
कसोगे फब्ती
'सरवा बांभन भीख ही माँगेगा न'
मैं आप सबसे माफी माँगता हूँ
इस जाति में पैदा होने पर
मैं नहीं जानता मेरा दोष क्या है

मैं फिर माफी माँगता हूँ
बरसों पहले माता-पिता ने
मुझे पुरुष बच्चे के रूप में जना
            मैं अपराधी हूँ...
            हो सके मुझे माफ कर देना...

मैं उस लड़की से भी माफी माँगता हूँ
जिसने मुझे बिना कारण बताए
अभी कल ही सारे-बाजार फटकारा
जैसे मैंने की हो कोई अश्लील हरकत !

मै धरती की गोद में पाला हुआ एक बच्चा
आकाश पिता को साक्षी मानकर
कहता हूँ
'मैंने कुछ नहीं कहा'
'मैंने नहीं की कोई हरकत'

फिर भी मै माफी माँगता हूँ
उस लड़की से
जो मेरी माँ, बहन या बेटी है
जिसे हजारों बरस तक
   डाटा जाता रहा
     पीटा जाता रहा
        जान से मारा जाता रहा
            बिना गलती बताए !
मैं माफी माँगता हूँ
  मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूँ
    मुझ पर थूको
      मुझे गोली मार दो
          मेरी लाश चौराहे पर टाँग दो
मै माफी माँगता हूँ
मैंने कोई गलती नहीं की
मैं एकलव्य-पथ की सीढ़ियाँ नहीं गिनूँगा
मैं कहता हूँ तुम मुझे फाँसी दे दो
मेरे बाप-दादों के किए पर...
   मै माफी माँगता हूँ
मेरे बच्चों को यह सजा मत देना
मै एकलव्य-पथ की सीढ़ियाँ नहीं गिनूँगा।

* एकलव्य-पथ हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में बेतरतीब सीढ़ियों वाला मार्ग जो पठार की ऊँचाई पर ले जाता है।


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